Sunday, March 28, 2010

है माद्दा......



(Akshay Kumar jha)

शायद कुछ ऐसा ही मौसम रहा होगा आज से आठ साल पहले गुजरात में भी... लेकिन रोज़ किसी न किसी के घर से रह-रह कर रोने बिलखने की आवाज़ बीच-बीच में आती रही होगी... 59 हिंदुओं की लाश की क़ीमत करीब 1200 लोगों की बली रही... अब उसमें से कितने हिंदु और कितने मुस्लमान रहें होंगे इसी गिनती नहीं हो पाई थी.... आज आठ साल बीतने को है... कांग्रेस नेता एहसान जाफ़री की बीवी जाकिया जाफ़री आज तक अपनी लड़ाई लड़ रहीं है... शायद उनको अब जाकर थोड़ी राहत मिली होगी.... मोदी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाए गए विशेष जांच दल एसआईटी को अपने आठ साल के चुप्पी का जवाब बंद कमरे में 9 घंटे की हाज़िरजवाबी से दी... अपने चित परिचत अंदाज़ में मोदी अहमदाबाद के एसआईटी दफ़्तर में दोपहर में दाखिल हुए और तकरीबन पांच घंटे की पूछताझ के बाद वो जब बाहर आए तो पारखी नज़रों को वे थोड़े परेशान दिखे.... चेहरे पर जो चमक मोदी हमेशा लिए घूमते है वो थोड़ी कम दिखाई दी... लेकिन फिर से चंद घंटों के बाद वो एसआईटी के दफ़्तार में दिखे और क़ानून को सबसे ऊपर बताते हुए प्रेस के सामने आकर कहा कि शायद अब मेरे आलोचकों को सही जवाब मिला होगा... मोदी ने शेर की दहाड़ लगाते हुए कह दिया कि मेरा काम ख़त्म हुआ बाकी उच्चतम न्यायालय को संतुष्ट होना है....” 7 अक्टूबर 2001 से गुजरात की कुर्सी पर विराजमान इस महत्वाकांक्षी राजा की 2002 कांड में कितना हाथ है... ये कह पाना शायद मुश्किल है... हां लेकिन इस 9 सालों में गुजरात के विकास से हम ये अंदाज़ा लगा सकते हैं कि कुछ तो ख़ास है गुजरात के ही वादनगर के एक छोटे से परिवार में जन्मे 60 साल के इस मर्द में... 60 के दशक में कभी रेलवे स्टेशन पर पाक युद्ध में जख़्मी लोगों की मदद करने की बात हो या फिर 1967 की उस समय की बात हो जब बाढ़ ने पूरे राज्य को डूबाने की सोच ली थी, तब इस नौजवान को बिना स्वार्थ के लोगों ने श्रमदान देते हुए देखा है... अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से राजनैतिक जीवन में प्रवेश करने वाले इस नरेंद्र ने ये कभी सोचा भी नहीं होगा कि वो 2010 के वाइब्रेंट (Vibrant) गुजरात के मुख्यमंत्री मोदी होंगे.....1975 से 1977 का वो दौर जब लोकतंत्र की परिभाषा दिए जाने वाले भारत में आम लोगों के अधिकारों से केंद्र में बैठी कांग्रेस की सरकार खेल रही थी तब पूरे सिस्टम से लड़ कर नरेंद्र मोदी लोकतंत्र को ज़िदा रखने में जुटे हुए थे... लेकिन 2002 में गुलबर्ग सोसाइटी में पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि भीड़ ने 1000 से ज़्यादा लोगों को निगल लिया... इसका जवाब शायद एसआईटी को मिल गया हो... 30 अप्रैल के बाद जब एसआईटी अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौपेगा तो आम जनता को भी मालूम चलेगा कि नरेंद्र मोदी कितने वाइब्रेंट है.... हां लेकिन इतना तो ज़रूर कहना पड़ेगा की माद्दा है इस नेता में.....

Friday, March 26, 2010

औरत न हुई कि तमाशा ही हो गया.....

(Akshay Kumar jha)
तमाशा... जी... न हमने की... न आपने... न ही महिलाओं ने अपना तमाशा बनाया... तमाशा तो बना दिया हमारी जननी, हमारी माता, हमारी मां को सियासतदांओं ने... 10 फ़रवरी वो एक ऐसा दिन कि मेरे जैसे साधारण news executives ने भी ब्लॉग लिखने की सोच ली... एक दशक से ज़्यादा इंतज़ार के बाद राज्यसभा में जैसे ही वुमेन रिज़रवेशन का बिल रखा गया मानो किसी ने फिर से हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिया हो... हरकतें ऐसी-ऐसी देखने को मिली जो आज तक नहीं देखी गई थी.... दो पार्टियों के सांसद ने पूरे भारत को शर्मसार कर दिया... महामहीम राज्यसभा की अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे देश के उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी के हाथों से लेकर बिल को फाड़ने की कोशिश ऐसी की गई की मानो किसी रिक्शे वाले ने किराया ज़्यादा मांग लिया हो! और सारा ग़ुस्सा उसी पर उतारना है... बेचारे राजनीति के वो मुखदर्शक जो सिर्फ़ नियमों और कायदों को निभाने के लिखे बैठे हैं न ग़ुस्सा दिखा सके न ही कोई ठोस क़दम उठा सके जबतक कि.... ऊपर से फ़रमान न आ जाए कि मनचले को उनकी औक़ात बताओ.. लगभग आधे दर्जन सांसद निलंबित हो गए... मगर शायद आपने देखा होता कि ऐठन नहीं गई थी... कह तो यहां तक रहे थे कि वो दलितों को लेकर इस संशोधन से सरोकार नहीं रखते.... हां भले ही उनके ही पार्टी में 10 महिला सांसद भी 15 साल की सलतनत में न तो सर उठा सकीं हैं और न ही सांस ले सकीं है... हां दुनिया को दिखाने के लिए शायद एक-आध बार किसी अबला को मौक़ा ज़रूर दे दिया गया है.... जिसका नामो निशा शायद ही आपको सुर्ख़ियों में मिले.... बात अगर सिर्फ़ आरक्षण की होती तो कहानी कुछ और ही होती.... लेकिन बात उस समाज से जा भिड़ी जो समाज को न चलाते हुए भी समाज की मां है.... तो बेटा तो सबको बनना है... तो चलो दलितों का बन जाने में क्या दिक्क़त है... वैसे भी इस समाज (दलित समाज) के दुखतीरथ पर हाथ रखने में कोई ज़रा भी चूक नहीं करता... ख़ैर जो भी हो राज्यसभा में तो बिल की चांदी हो गई... चाहे किसी भी क़ीमत पर हुई हो... तीन बार और लियाछेदर होगी तो शायद 125 करोड़ से ज़्यादा जनसंख्या वाले इस देश को 543 सांसदों में से 181 सांसद साड़ी या सलवार सूट में दिख जाए... अब मुलायम सिंह यादव तो है नहीं कि अनुमान भी लगाना शुरू कर दे कि ताली बजेंगी की सीटियां..... हां भारतीय लोकतंत्र में ये संभव ज़रूर है कि वोट हमको उन्हीं समाज के ठेकेदारों के देनी पड़े जो पहले भी गाहे बगाहे हमसे वोट लेकर मनमानी कर रहे हैं... हां मगर ये ज़रूर हो गया कि "औरत न हुई कि तमाशा ही हो गया".....