
तमाशा... जी... न हमने की... न आपने... न ही महिलाओं ने अपना तमाशा बनाया... तमाशा तो बना दिया हमारी जननी, हमारी माता, हमारी मां को सियासतदांओं ने... 10 फ़रवरी वो एक ऐसा दिन कि मेरे जैसे साधारण news executives ने भी ब्लॉग लिखने की सोच ली... एक दशक से ज़्यादा इंतज़ार के बाद राज्यसभा में जैसे ही वुमेन रिज़रवेशन का बिल रखा गया मानो किसी ने फिर से हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिया हो... हरकतें ऐसी-ऐसी देखने को मिली जो आज तक नहीं देखी गई थी.... दो पार्टियों के सांसद ने पूरे भारत को शर्मसार कर दिया... महामहीम राज्यसभा की अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठे देश के उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी के हाथों से लेकर बिल को फाड़ने की कोशिश ऐसी की गई की मानो किसी रिक्शे वाले ने किराया ज़्यादा मांग लिया हो! और सारा ग़ुस्सा उसी पर उतारना है... बेचारे राजनीति के वो मुखदर्शक जो सिर्फ़ नियमों और कायदों को निभाने के लिखे बैठे हैं न ग़ुस्सा दिखा सके न ही कोई ठोस क़दम उठा सके जबतक कि.... ऊपर से फ़रमान न आ जाए कि मनचले को उनकी औक़ात बताओ.. लगभग आधे दर्जन सांसद निलंबित हो गए... मगर शायद आपने देखा होता कि ऐठन नहीं गई थी... कह तो यहां तक रहे थे कि वो दलितों को लेकर इस संशोधन से सरोकार नहीं रखते.... हां भले ही उनके ही पार्टी में 10 महिला सांसद भी 15 साल की सलतनत में न तो सर उठा सकीं हैं और न ही सांस ले सकीं है... हां दुनिया को दिखाने के लिए शायद एक-आध बार किसी अबला को मौक़ा ज़रूर दे दिया गया है.... जिसका नामो निशा शायद ही आपको सुर्ख़ियों में मिले.... बात अगर सिर्फ़ आरक्षण की होती तो कहानी कुछ और ही होती.... लेकिन बात उस समाज से जा भिड़ी जो समाज को न चलाते हुए भी समाज की मां है.... तो बेटा तो सबको बनना है... तो चलो दलितों का बन जाने में क्या दिक्क़त है... वैसे भी इस समाज (दलित समाज) के दुखतीरथ पर हाथ रखने में कोई ज़रा भी चूक नहीं करता... ख़ैर जो भी हो राज्यसभा में तो बिल की चांदी हो गई... चाहे किसी भी क़ीमत पर हुई हो... तीन बार और लियाछेदर होगी तो शायद 125 करोड़ से ज़्यादा जनसंख्या वाले इस देश को 543 सांसदों में से 181 सांसद साड़ी या सलवार सूट में दिख जाए... अब मुलायम सिंह यादव तो है नहीं कि अनुमान भी लगाना शुरू कर दे कि ताली बजेंगी की सीटियां..... हां भारतीय लोकतंत्र में ये संभव ज़रूर है कि वोट हमको उन्हीं समाज के ठेकेदारों के देनी पड़े जो पहले भी गाहे बगाहे हमसे वोट लेकर मनमानी कर रहे हैं... हां मगर ये ज़रूर हो गया कि "औरत न हुई कि तमाशा ही हो गया".....
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