(Akshay Kumar jha)
आज कल थोड़ी उदासी सी छाई है...ज़िंदगी में मानो उबासी सी छाई है
अपनो के भरोसे बैठे थे...इसलिए ज़िंदगी के रंग पर काली स्याही सी छाई है
मर-मर के मानो रोज़ जी रहा हूं...इसलिए आंखों में जैसे रूलाई सी छाई है
सीना फट रहा है....आंखें रो रहीं हैं...लेकिन होठों पे ख़ामोशी सी छाई है...
फटे मन से...फटे मन से....अपनी फटेहाली का हाल क्या बताऊं मेरे दोस्त
ज़िंदगी रुक सी गई है और चारो ओर बदहवासी सी छाई है....
कि क्या कहूं... आज कल थोड़ी उदासी सी छाई है....